दलितों की स्वघोषित देवी -बहिन जी |
घोर तुष्टिकरण की नीति से हिन्दुस्थान के मुस्लिमों को दोयम दर्ज़े का तथा अलग प्रजाति का वर्ग बनाने के बाद,दलित शब्द के माध्यम से हिन्दुओं के बीच इस गहरी खायी को दिन बा दिन और गहरा करने का प्रयास अनवरत जारी है .
इन् राजनीतिक दुकानदारों को यह बात भलीभांति पता है की उनका अस्तित्व ,नितांत इस घोर अलगाववादी प्रकृति पर ही निर्भर है .जहाँ खेतो में मज़दूरी करके रोज़ी रोटी कमाने वाला स्वावलम्बी ,या सरकारी आरक्षण का लाभ अथवा स्वयं के पौरुष से लाभ या प्रतिष्ठा के पद पर आसीन तथाकथित "दलित" इन दुकानदारों के बुने हुए जाल में फंस के पार्टी का झंडा उठा के मर मिटने को आतुर हो जाता है ,जिनमे से कुछ एक के मरने पे श्रधांजलि का दौर चल पड़ता है यदि उसकी मृत्यु समय विशेष पर हुई हो यानि चुनाव आने वाला हो या सत्ता में बैठी पार्टी के विरुद्ध कुछ तथ्यपरक न मिल रहा हो ;उसकी जाती विशेष और उस विशेष जाती के सधे वोट बैंक के चलते .
और स्वाभाविक तौर पर राजनैतिक लाभ उस पार्टी के बैठे मुखिया और चुने हुए चमचों को मिलता है जो उन्ही अनायास मरे हुए लोगों से खुद को देवी और देवता मनवाते /बुलवाते है और उनके रहनुमा घोषित करवाते है .
वस्तुतः , न तो देश में दलित जैसे शब्द की व्याख्या उपलब्ध है और न ही संवैधानिक विवेचन .इतना ही नहीं दलित -दलित करके उन्हें पददलित और अत्यंत नीच कर देने का कुत्सित प्रयास करने वाले आज राजाओं की सी जिंदगी बिता रहे है और उनके राजनीतिक हथियार वो बेचारे तथाकथित दलित लोग आज भी वैसे ही गुजर बसर कर रहे है .
हाल ही में वर्ष २०१५ की दलित रूपांतरित /प्रायोजित घटनाएं और अभी बसपा की मायावती का प्रकरण हमारे समक्ष है . खुद को बहिन जी कहलाने वाली कहती है की वो अपने दलित बनाए हुए लोगों की देवी स्वरुप है और स्वघोषित देवी के विरूद्ध टिपण्णी करने वाला उनके भक्तों से स्वाभाविक हिंसक प्रताड़ना का भागी है .
इन बहिन जी के जैसे दलित या जाती केंद्रित राजनीती करने वालों के अपने स्वघोषित भक्त हैं जो देवी /देवता उपासना में बलिदानी बनने को आतुर रहते है .
ये ऐसे देवी /देवता है जो हज़ारों करोड़ों रुपये के अघोषित संपत्ति पर आराम करते हुए खुलेआम पार्टी का टिकट करोडो में लाटरी की तरह संभावित /लालायित उम्मीदवार को बेचते है .जिनके ऊपर अनेक जाँच के आदेश /कार्यवाही जारी है .जिनकी गुंडागर्दी उनके तथाकथित "दलित" होने की वजह से और उनके दलित भक्तों के नाराज हो जाने की वजह से और राजनीतिक विवशता के चलते लंबित और निष्क्रिय पड़ी है .
विडम्बना यही है की इन्होंने खुद को उन् घोषित " दलितों" का ऐसा पूज्यनीय नेता बनवा लिया है की यदि अन्य दल, राष्ट्रीय हित में इनके कृत्यों का बहिष्कार ,प्रतिकार करें तो छड़ भर में वह "दलित दमन /शोषण " हो जायेगा और देशव्यापी भाड़े के बुद्धजीवियों का विलाप प्रारम्भ हो जाता है और संवैधानिक दलीलें भी प्रस्तुत होने लग जाती है जिसमे शिक्षाविद ,न्यायपालिका और सामाजिक क्षेत्र से जुड़े सभी प्रतिष्ठित निहित स्वार्थ से दलित राजनीती में तल्लीनता से लग जाते है .
यह विषय उन राज्यों के लोगों को तय करना है जहाँ ऐसे स्वघोषित देवी -देवता ,अंधभक्तों से राजा बने हुए ऐश कर रहे है . संसद से लेकर विधानसभा में अपने चयनित चमचों के माध्यम से राजनीतिक सांठ-गांठ और निर्धारित लेनदेन करके दलित और दलित विषय को जीवंत बनाए रखना चाहते है ताकि ये उनके द्वारा घोषित हुए "दलित " सदैव दलित बने रहें ,इन्हें देवी स्वरुप मानते रहे और इनकी अय्याशी, राजनति के माध्यम से राजनीतिक गलियारों में अपनी चमक धमक बनाए रखे .
फिर चाहे किसी को जबरन "दलित कुर्बान" करना पड़े , दंगा करवाना पड़े या राजनीतिक दहशत फैलानी पड़े की उनके ऊपर ,उनके किये गए कुकृत्यों का विरोध या कार्यवाही समूचे दलित समाज का शोषण और अपमान है क्योंकि अंततः वो "दलितों " की देवी जो है !