Saurabh Pandey |
ऐसा देश जहां की मीडिया वास्तविक विषयों से दूर भागने के लिए समाचार का अचार बनती रहती है तथा अप्रासंगिक एवं तथ्यहीन विषय को पंथ निरपेछता की वकालत के नाम पर विवादास्पत शीर्षक से परोसती रहती है .
जहाँ पंथ निरपेछता की विधिवत खुलेआम ढेकेदारी ली जाती है और विषयहीन को संयुक्त प्रयास से महत्वपूर्ण विषय बनाने की कोशिश की जाती है ताकि सरकार को बेकार और देश का व्यापर किया जा सके जैसा की सदियों से देश के साथ होता आया है .
इस संयुक्त प्रयास में विभिन्न मीडिया घराने ,पदच्युत राजनैतिक दल एवं तिरस्कृत नेता ,समाज सेवा के नाम पर NGO व्यापारी ,भाड़े के बुद्धिजीवी ,कलाकार एवं साहित्यकारों की प्रतय्छ एवं अप्रत्यछ फ़ौज संलग्न है जो देश को सदियों से अपने अपने स्तर से बेचते आये हैं और बेच पाने में जरा भी असछम या असहाय दिखने पर नए तेवर और रंग रूप के साथ उभरने एवं अस्तित्व में आने का असफल प्रयास करते रहते हैं .
अभी असहिषुणता के बनावटी बवंडर का भंडाफोड़ घर घर पहुँच ही रहा था की भाड़े के बुद्धिजीवी गैंग ने एक संभ्रांत परिवार के पढ़े लिखे बिगड़ैल छात्र को ;जिसे हैदराबाद विश्वविद्यालय से स्कॉलरशिप भी मिलती थी ,अपनी देश द्रोही महत्वाकांच्छा का शिकार बना दिया ठीक वैसे ही जैसे केजरीवाल गैंग ने गत वर्ष दौसा -राजस्थान के गजेन्द्र सिंह को जंतर मंतर पर पेड़ पर लटकवा के किया था .
इस छद्म बुद्धिजीवी गैंग ने बेचारे रोहित वरमाल से पहले विश्वविद्यालय प्रांगण में राष्ट्र द्रोही प्रदर्शन करवाये ,उससे विघटनकारी एवं आतंकवादियों की सजा के विरुद्ध प्रदर्शन में मुखौटा बनाया .विश्वविद्यालय प्रशासन को उस पर नैतिक कार्यवाही करने को विवश किया ,उसे बेरोजगार किया और आत्महत्या पर विवश किया जैसा की उसने अपने अंतिम पत्र में जिक्र भी किया है .
एक छात्र को जबरन दलित घोषित करने में छद्म बुद्धिजीवी गैंग ने विलम्ब नहीं करना चाहा मानो ऐसा की देश में सामान्य वर्ग परित्यक्त एवं हीन प्रजाति का हो ??
छात्र की भी जाती एवं प्रजाति बनाने में इनके निहितार्थ की पराकष्ठा तो देखिये की रातों रात कफ़ ग्रसित दिल्ली का सी. एम. केजरीवाल ,अपनी बुद्धिमानी का दुनिया में लोहा मनवा चुके राहुल बाबा समेत अनेक पाखंडी जो कुछ दिनों से रसातल में दबे थे निकल आये और धरना प्रदर्शन के धंधे में पुनः सक्रीय हो गए .
फिर क्या ट्विटर क्या न्यूज़ डिबेट, हर जगह दलित छात्र पर अत्याचार का समाचार ऐसा मिला मानो मोदी सरकार को इस बार तो घेर ही लेंगे .
अथक परिश्रम से निरर्थक उद्देश्य में लगे ये पाखंडी संघ मुख्यालय भी पहुंचे और जोर शोर से "नीम का पत्ता कड़वा है -नरेंद्र मोदी भड़वा है" के नारे लगते मिले (वीडियो सोशल नेटवक पर वायरल है ).
इन् भद्दे नारों के बीच कुछ शिखंडी भी छात्र रूप में थे जो दिल्ली पुलिस को प्रेरित कर रहे थे गलियां देकर की हम तथाकथित छात्र , संघ और मोदी का नाहक आरोपी बनाने का कोई मनगढंत अवसर नहीं गवाना चाहते .
और जब लम्बे बालों वाले शिखंडी बने छात्र अपने अमृत वचन के फलस्वरूप पुलिसिया कार्यवाही का शिकार हुए जोकि लाज़मी भी था ,तो मीडिया गैंग ने उसे महिला बनाम पुरुष करार देने में देरी नहीं की यह सोचे बिना की उस लम्बे बल वाले शिखंडी पुरुष का असली रूप क्या है .
अच्छा हुआ घटना स्थल पर उपस्थित जनों ने बाकायदा सारा नंगनाच रिकॉर्ड कर रखा है जो सोशल मीडिया पर भी उपलब्ध है .
विषय यह नहीं की छात्र दलित ता या सवर्ण ,छात्र था या उपद्रवी ,उसका निष्कासन सुनियोजित था या नैतिक कार्यवाही ,उसकी आत्महत्या विवस्ता थी या प्रायोजित रहस्य ?
विषय की भयावहता यह की यह बेशर्म राजनीती आखिर कब तक ? मौत पर राजनीती कब तक ? कब तक मीडिया बिकेगी ? मीडिया के माध्यम से रोटी सेकने वाले कब तक उल्लू बनाएंगे ? और हम कब तक बेकुफों की तरह इस छद्म सेकुलरिज्म के शिकार होते रहेंगे जिसने देश के बहुसंख्यक समाज को तिरष्कृत करके रखा हुआ है तथा अल्पसंख्यक को आतंकी का पैरोकार ?
सिर्फ कल यानि २ फरवरी की घटना को लें तो ,देश को बदनाम और गलियां देने वाले विदेशी सरजमीं पर आमंत्रित किये जाते है और एक राष्ट्रवादी कलाकार अपने मुखर व्यक्तित्य के चलते वीसा मिलने से ही वंचित रह जाता है ? जहाँ आतंकियों के नाम पे विश्वविद्यालय में प्रदर्शन करने वाला रातों रात शहीद में शुमार हो जाता है तो ठीक उसी समय दर्जनों छात्रों का दुर्घटना में मर जाना अप्रासंगिक हो जाता है ??
जहाँ चनाओ का समय आते ही एक विशेष तबके के मन में असहिषुणता और असुरछा बढ़ जाती है परन्तु चुनाव खत्म होते ही सब पहले जैसा सामान्य हो जाता है ??
जहाँ मुस्लिमो के बस इतना कह देने पर की वो उपेच्छित है (सच्चाई विश्व विदित है) ,भाड़े के बुद्दिजीवियों का मातम शुरू हो जाता है और मुस्लिमों के द्वारा सुनियोजित दंगा एवं खुलेआम राष्ट्रद्रोह करने पर भी सब शांत रह जाते है ? ?
इस देश के बहुसंख्यक को सेकुलरिज्म और झूठे विकास के नाम पर प्रतिदिन आघात पहुचने वाले ये देशद्रोही एक चयनित सरकार के विश्व्व्याप्त महिमा से तिलमिलाए पड़े है .बेचैन है उन् आकाओं के एहसान तले जिन्होंने इन गद्दारों को सदियों से पला पोशा है .देश में ही रह कर देश के विरुद्धः तैयार करने में इनके प्रत्येक निजी आवश्यकताओं का हर संभव सहयोग किया है .
इन्हे याद अवश्य दिला देना चाहिए ! देश ने एक योगी को मुखिया चुना है नाकि भोगी एवं रोगी को . वह योगी अपनी राष्ट्र भक्ति की योग साधना में प्रतिपल व्यस्त है । ऐसी योग साधना में आने वाले प्रत्येक राछस या तो सुमार्ग पर स्वतः आ जायेंगे या समय के साथ विलुप्त हो जायेंगे । इतिहास तो ऐसा ही बतलाता है ।हो सकता है इनके पास कोई और इतिहास हो तभी इनके सुधरने की उम्मीद इन्हे खुद भी नहीं ।
परन्तु कुछ भी हो छात्र को दलित बनाने के बहाने मीडिया को २-३ दिन का मसाला जरूर मिल गया ।
इस ब्लॉग के लेखक मृतक रोहित को गैर - दलित बनाने के फेर में यह भूल रहें हैं कि अपराधियों का यह अपराध मृतक की जाति बदल देने से नहीं बदल जायेगा| आत्महत्या के लिए किसी को मजबूर करना अपराध और पाप बना रहेगा|
ReplyDeleteमहोदय आपने ब्लॉग ठीक से विधिवत नहीं पढ़ा संभवतः ।लेखक ने स्पष्ट रूप से लिखा है की किन धूर्त लोगों का षड़यंत्र एक "दलित " बनाये गए छात्र को मौत दिल गया जो अकारण उनके छद्म वैचारिक आतंक का शिकार हो गया ।
Deleteविडम्बना तो ये है की हत्यारों ने पहले उससे मारा फिर नाटकीय रूप से उसका दलित रूपांतरण करके न्याय की गुहार लगा रहे हैं ।
हाँ , यह विषय आपियों के लिए "बहुत क्रन्तिकारी " है ..... पता कीजिये शायद पुण्य प्रसून जोशी और बरखा दत्ता स्क्रिप्ट लिखने में व्यस्त होंगे "क्रन्तिकारी " रोगी सर जी के साथ ...
Good
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